Sunday 25 September 2016

मुट्ठी मे साँसे

देखा मालिक को
किये मुट्ठी बंद
मुट्ठी मे  थी उनके
मेरी साँसे ।
उनके पास था एक चाबुक
चाबुक जो खींचता था
पसीने से  सांसे
अगर आज मजदूरी मे मुट्ठी भर साँसे मिली
तो देखेंगे रोटी कितनी हवादार बनती है ।






Saturday 30 November 2013

अगर लोग तुम्हे इंसान कहते है

एक बहता  दिन
एक दौड़ती रात
एक सोती सुबह
एक उमसती साँझ |
और एक काली सी नदी
सहमी- सहमी सी कैद हवाएं
कब्र  से छोटा  एक कमरा
कफन से छोटा एक बिस्तर
आँखों से छोटी एक खिड़की |
एक बूढ़ा सा पेंट
उम्र के साथ छोटी होती शर्ट
एक मोची के धागों का चमड़े से जुड़ा जूता |
एक रुका -रुका सा पंखा
एक गर्मी से जलता बलब
एक दस का नोट और एक भूँख
एक शहर ,एक बंद गली का माचिस की ड़िब्बीनुमा  मकान
एक तीली जैसा कमरा ,और एक हड्डियों पर लटका  ढांचा
हाँ ये तुम भी  हो  अगर लोग तुम्हे इंसान कहते है |

Tuesday 18 June 2013

कम्युनल रोटी और सेकुलर भूख


लोगो को सेकुलर और कम्युनल मे खपाना आजकल फैशन मे है । सभी सम्माननीय नेता जी लोग ,लोगो मे फूट डाल कर कुर्सी का स्वाद लेना चाहते है ।

 इसी बात पर  मैंने अपने दूर के मित्र से जो कि एक पार्टी के नेता है से डरते -डरते पूंछ ही  लिया |

दोस्त ,ये सेकुलर कम्युनल क्या होता है और आपके पास लोगो को सेकुलर और कम्युनल बनाने का कोई रास्ता है ?

दूर के नेता दोस्त - सेकुलर कम्युनल  का वायरस भारतीय राजनीतिक पंडितो की ऐसी  खोज है जिसके लिये हमें नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये । कम्युनल और सेकुलर का वायरस हमारी पार्टी के पास होता है जिसे हम लोगो पर टाइम टू टाइम छिड़के रहते है । इसके  छिडकाव के बाद घोटालों के लिए  जमीन  तैयार हो जाती है ।  ये वायरस तो इतना खतरनाक होता है की जमींन पर घोटालो के साथ साथ हवा मे और जमीन के नीचे भी कर सकते है । 

मैंने फिर पूंछा -जनता के पास वायरस से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक पॉवर  तो होगी ही ?

दूर के नेता दोस्त - ये वायरस बहुत पॉवरफुल है और जब  पेट भूखा हो तो रोग लग ही जाता है । 

मैंने पूंछा - आगे वायरस विकास के बारे मे क्या योजना है ?

दूर के नेता दोस्त -अभी  वायरस विकास की योजना मे हम मीलो आ गए है और मीलो हमें जाना है और कुछ घोटालेरुपी सपने है जिनको पूरा करके दिखाना है । अगले चरण मे लोगो को कम्युनल और सेकुलर बस्तियों मे बाँटना है जैसे कि  सेकुलर समाजवादी बस्ती और कम्युनल रामभक्त बस्ती । 

जब मुझे  महसूस हुआ कि अब मै भी वायरस से ग्रसित हो रहा हूँ तो मै वहाँ से पलायन कर लिया । 

लकिन मित्र ने बिलकुल सत्य वचन कहे । लकिन महसूस होता है कि "रोटी कम्युनल है और भूख  सेकुलर " । 
क्योंकि सरकारे रोटी तो धर्म के नाम पर बाँट सकती है लकिन  भूख नहीं । भूख ही सच्चा सेकुलर धर्म है । 

वैधानिक चेतावनी - ये लेख किसी पार्टी के कार्यकर्त्ता अपने रिस्क पर पढ़े भावनाये आहत हो सकती है । अगर पढ़ ही लिया है तो इस गर्मी मे एक गिलास गरम पानी पी लें | 






Sunday 16 June 2013

बाप मरे अँधेरे मे ,बेटा पावरहाउस

सिगरेट के घुंए से छल्ला बनाने मे प्रयासरत एक इंजीनियरिंग नौजवान सुशील ,जोकि अश्लीलता फैलाने मे पीएचडी कर चुके है । सुबह की सिगरेट पीये ही थे कि   उनके डैडी का फ़ोन आ गया । 
आगे क्या होता है सुनिए ,

पिता - क्या रहे थे, बेटा ?

लड़का - बस पापा पढ़ रहा था ।  ( हाँ ,1 महीने पहले एग्जाम का पेपर पढ़ा था । )

पिता -नास्ता कर लिया, बेटा ?

लड़का - सुबह -सुबह ही कर लिया था । ( सुबह -सुबह नास्ता पीते है मतलब सिगरेट)

पिता - कितने बजे जाग गए थे ? 

लड़का - पापा चार बजे जाग गया था । एक महीने बाद सेमिस्टर एग्जाम है । ( 4  बज गए लेकिन पार्टी अभी बाकि है ,गाने पर सुबह 4 बजे डांस कर रहे थे ,रूम मे मधुशाला खुली थी । )

पिता - बेटा  पैसे तो कम नहीं है ?

लड़का - हाँ ,पापा 2 हज़ार रुपये भेज देना कोचिंग करनी है । (वो अगले हफ्ते मसूरी जाने का प्लान है )

पिता - ठीक है बेटा ,मन लगा के पढाई करना । तुझे बड़े होकर बड़ा इंजिनियर बनना है । (ताकि शादी के मार्केट मे लड़के का रेट बढ़ जाये । )
लड़का - हाँ ,पापा ठीक है । (लड़का बड़ा होकर खेतो मे जुताई का बैल बनेगा )

वैधानिक चेतावनी - ऐसा आपके साथ भी हो सकता है |





Wednesday 10 April 2013

भीड़ मे खुद को जब भी पाया तो तन्हा ही पाया .

जिसको चाहा वो चला गया ,
अकेला था अकेला ही रह गया । 

वो एक चेहरा फिर कभी न देख पाया ,
व़ो  एक हँसी जिसको कभी न समेट पाया ,
एक दिन अचानक बिछड़ के फिर न मिल पाया ,
वरना मिलने वालो को बिछड़ बिछड़ के मिलता पाया । 

कहाँ उनका रास्ता था और कहाँ रास्ता मेरा ,
कहीं किसी चौराहे रास्तों को मिलते न पाया ,
बिछड़ कर हर चेहरे एक चेहरा मे खोजता हूँ अब ,
भीड़ मे खुद को जब भी पाया तो तन्हा ही पाया । 

Sunday 30 December 2012

बदलता रहा कलेंडर के पन्ने सालभर


बदलता रहा कलेंडर के पन्ने सालभर ,
बदला नहीं गम का मौसम सुबह शाम रात भर। 

बाँटने के शौक मे क्या क्या न  बँटा जमीन पर,
 देश बँटे ,लोग बँटे,वक़्त तक  बँटा कलेंडर पर ।

कितने सारे लोग आये हमदर्द बताकर ,
मौका पाकर ले गए कलेडर से सपनो को नोंच कर ।

सच का टोकरा लिए बैठे रहे हम कलेंडर पर ,
बिक गए  दुनिया के सारे झूठ वक़्त के  बाजार पर ।

बदलते साल की खुशियों मे डूबा है ये शहर ,
किसी ने देखा भूखे बचपन को ठिठुरते फुटपाथ पर ।

Tuesday 25 December 2012

लाठीशास्त्र का एक पन्ना


दुनिया मे सब नश्वर है  पर लाठी  अमर है ।बस समय के साथ और लठैत की मंशा  के साथ इसको चलाने के तरीके बदल गए ।सच मे तो लाठी एक मल्टीटास्किंग यंत्र है ,बुढ़ापे का सहारा भी है ,बदमाशो पर भी चलती है । लकिन जब सरकार की नहीं चलती तो निहत्थों पर भी चलती है ।


आजादी से पहले लाला लाजपत राय पर बरसी लाठियाँ अंग्रेजों के ताबूत की कील बन गयी और लाठी ने गाँधी जी को भी सहारा दिया  जिसे महात्मा गाँधी  पकड़ के चलते थे । इस तरह लाठी के योगदान को आजादी के आन्दोलन मे भी नहीं भुलाया जा सकता ।


आज के युग मे सरकारें भी देश को भी लाठियो से देश चलाती है ।सरकार के पास केवल  काठ की लाठी नहीं होती ,उसके पास धर्म जाति ,पैसे और फूट डालने की भी लाठियाँ होती है । रविवार को इंडिया गेट पर जब सामूहिक रेप के विरोध मे दिल्ली के युवा एकत्रित हुए तो खूब  पुलिसिया लाठी चली और लाठी फिर चर्चा मे आयी ।निहत्थे पर चलने वाली हर लाठी एक   की अगर आप देश के सच्चे नागरिक है तो आपने कभी न कभी लाठी का स्वाद चखा होगा ।

अंत मे जनता के पास भी चुनावी वोट की लाठी होती है ,जिसे समाज अपनी सोच का तेल लगा मजबूत कर सकता है ।
                    

Thursday 6 December 2012

हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ..

 न मैं हिन्दू हूँ ,

न मैं मुस्लिम हूँ ,
रंजिशों की चौखट  पर ,

रोती, पुत्र रक्त से नहलायी गयी माँ हूँ ,

हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।


न मैं मंदिर हूँ ,
न मैं मस्जिद हूँ ,
वोट बैंक  की लूट पर ,
प्रेम धर्म बतलाने वाली जीवन की घोर निराशा हूँ , 

हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।

 


 न मैं लक्ष्मीबाई हूँ ,
 न मैं रजिया सुल्ताना हूँ ,
राम खुदा के नाम पर ,
लूटी अस्मत  वाली नंगी आँखों का निवाला हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ । 


न मैं बच्ची हूँ ,
न मैं बुढिया हूँ ,
दंगो  के मेलो  पर ,
सब हाथों से मरोड़ी गयी गुड़िया हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।


(अयोध्या को हम सभी अपने धार्मिक पूर्वाग्रहों से देखते है ,कभी उस शहर की नजरों से नहीं देखते ।जो सरयू तट पर बैठ कर अपने दाग धोना चाहता है ।)