Saturday 30 November 2013

अगर लोग तुम्हे इंसान कहते है

एक बहता  दिन
एक दौड़ती रात
एक सोती सुबह
एक उमसती साँझ |
और एक काली सी नदी
सहमी- सहमी सी कैद हवाएं
कब्र  से छोटा  एक कमरा
कफन से छोटा एक बिस्तर
आँखों से छोटी एक खिड़की |
एक बूढ़ा सा पेंट
उम्र के साथ छोटी होती शर्ट
एक मोची के धागों का चमड़े से जुड़ा जूता |
एक रुका -रुका सा पंखा
एक गर्मी से जलता बलब
एक दस का नोट और एक भूँख
एक शहर ,एक बंद गली का माचिस की ड़िब्बीनुमा  मकान
एक तीली जैसा कमरा ,और एक हड्डियों पर लटका  ढांचा
हाँ ये तुम भी  हो  अगर लोग तुम्हे इंसान कहते है |