Friday 21 September 2012

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे

 पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
बेचते रहते है ईमान सरेआम है लोग कैसे कैसे |

बन गए लफंदर हमारे आका वोट बिके जैसे जैसे ,
जो बिके नहीं वो टिके है यहाँ वहाँ जैसे तैसे |

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
बच्चे न रहे न  माँये न रही   ,दंगे हुए कैसे कैसे |

सियासी लोग हँसते रहे सर  कटे जैसे जैसे ,
दंगाई भगवान बने राम बचे जैसे तैसे |

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
जीरो भी न गिन पाए लोग घोटाले हुए  कैसे कैसे 












Monday 17 September 2012

बदलता कुछ भी नहीं -1

बदलता कुछ भी नहीं 
डर वही है जो सदियों पूर्व  थे |
म्रत्यु के, भूख के, लाज के 
आज भी मारे  जाते है लोग 
 ईश्वर के नाम पर |


बदलता कुछ भी नहीं
लूट नहीं लूट के तरीके बदलते है |
नित जुड़ते है नए आयाम लूटशास्त्र में
चहेरे बदलते है, शासको के  महत्वाकांछाये नहीं
बदलते है तानाशाही के तरीके  प्रजातंत्र के नाम पर |


बदलता कुछ भी नहीं 
देह नहीं बदलती, देह के दर्द नहीं  बदलते |
देह खाती है साँस लेती है सोती है आज भी
आज भी देह बिकती है ,  इन्सान की
आज भी रोती है ,माँये पुत्रविलाप मे
आज भी बिकते है  इमान, सरे बाजार पर  |

Friday 14 September 2012

तिहाड़

आदमी को शरीफ होना चाहिए।
 गाय को दूध देना चाहिए।
  न्यायाधीश को न्याय देना चाहिए।
 राजा को प्रजा-वत्सल होना चाहिए।
 प्रेमी को निष्ठावान होना चाहिए।
 बच्चों को आज्ञाकारी होना चाहिए।
 घर पर अटारी होना चाहिए। 
अटारी पर चांद आना चाहिए।
 चांद के पार जाना चाहिए। 
चांद पर भी पड़ोसी सज्जन होना चाहिए।
 वहां के लिए ट्रेन समय पर छूटनी चाहिए। 
नलों में पानी आना चाहिए। 
पानी में प्रदूषण नहीं होना चाहिए।

प्रकृति को बचाने के लिए दौड़ना चाहिए।
 दौड़ में ज्यादा से ज्यादा लोग आएं इसके लिए कुछ सुंदरियां होनी चाहिए। 
सुंदरियों को पतिव्रता होना चाहिए।
 पति को सत्यवान होना चाहिए।
 शर्म को शर्म होना चाहिए। 
धर्म ही कर्म होना चाहिए। 
योजनाओं का पहाड़ होना चाहिए और एक लंबी-चौड़ी तिहाड़ होना चाहिए।