Thursday 29 November 2012

बेटिकट यात्री - कहाँ है जगह तुम्हारी

कोशिश कर सकते हो चढ़ने की ,
बोलो ,कहाँ है जगह तुम्हारी ।

दर्जे केवल दो ही है ,
दूसरा पहला ।

भरा है दूसरा खचाखच ,
लदे है लोग एक दूजे पर ,
हो रही है मारामारी ,
बोलो ,कहाँ है जगह तुम्हारी ।

निर्भीक हो चढ़ जाओ पहले दर्जे में ,
अगर हो आरक्षित हो सीट तुम्हारी ,
दौडकर जबरन कर जबरन चढोगे ,
बेज्जती  लांछन शायद सजा के होगे अधिकारी ,
घूस दोंगे तो ही शायद होगी तुम्हारी ,
बोलो ,कहाँ है जगह तुम्हारी ।

मुमकिन है समझ रहे जिसको पहला वो दूजा निकले ,
धक्मधक्के शोर शराबे से भरा वहाँ भी क्या भरोसा ,
कोई और बेधड़क, रौब या चतुराई से बैठा निकले ।

बहराल शायद नहीं हो किसी भी जगह के तुम अधिकारी ,
कुछ भी कर लो हैसियत थी रहेगी बेटिकट यात्री की तुम्हारी ।






Wednesday 7 November 2012

आईना हूँ एक दिन तो चटक ही जाऊँगा



 आईना हूँ एक दिन तो चटक ही जाऊँगा ,
 कब तक चलूँगा ईमान रास्ते पर कभी तो भटक ही जाऊँगा ।

लड़ता रहूँगा ताउम्र सच की खातिर,

जब पेट पर आयेगी तो बहक भी जाऊँगा  ,

आईना हूँ एक दिन तो चटक ही जाऊँगा  ।

 कब चलता रहूँगा सूने रास्तों पर ,
 कभी तो किसी बेईमान दुपहिये पर लटक ही जाऊँगा ,
 आईना हूँ एक दिन तो चटक ही जाऊँगा  । 

चटकते सब है चटकूँगा  मै भी पर  ,
दो चार को  आईना दिखा ही जाऊँगा  ,
आईना हूँ एक दिन तो चटक ही जाऊँगा  ।