Friday, 21 September 2012

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे

 पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
बेचते रहते है ईमान सरेआम है लोग कैसे कैसे |

बन गए लफंदर हमारे आका वोट बिके जैसे जैसे ,
जो बिके नहीं वो टिके है यहाँ वहाँ जैसे तैसे |

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
बच्चे न रहे न  माँये न रही   ,दंगे हुए कैसे कैसे |

सियासी लोग हँसते रहे सर  कटे जैसे जैसे ,
दंगाई भगवान बने राम बचे जैसे तैसे |

पेड़ो पर भी उगने लगे है पैसे देखो खेल सियासत के कैसे कैसे ,
जीरो भी न गिन पाए लोग घोटाले हुए  कैसे कैसे 












4 comments:

  1. and it's good the so called PM told us that, otherwise we wouldn't have known..
    nice lines by you

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  2. आपकी कविता पढकर अभिव्यक्ति के नए आयाम नज़र आते हैं

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