Monday, 17 September 2012

बदलता कुछ भी नहीं -1

बदलता कुछ भी नहीं 
डर वही है जो सदियों पूर्व  थे |
म्रत्यु के, भूख के, लाज के 
आज भी मारे  जाते है लोग 
 ईश्वर के नाम पर |


बदलता कुछ भी नहीं
लूट नहीं लूट के तरीके बदलते है |
नित जुड़ते है नए आयाम लूटशास्त्र में
चहेरे बदलते है, शासको के  महत्वाकांछाये नहीं
बदलते है तानाशाही के तरीके  प्रजातंत्र के नाम पर |


बदलता कुछ भी नहीं 
देह नहीं बदलती, देह के दर्द नहीं  बदलते |
देह खाती है साँस लेती है सोती है आज भी
आज भी देह बिकती है ,  इन्सान की
आज भी रोती है ,माँये पुत्रविलाप मे
आज भी बिकते है  इमान, सरे बाजार पर  |

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