बदलता कुछ भी नहीं
डर वही है जो सदियों पूर्व थे |
म्रत्यु के, भूख के, लाज के
आज भी मारे जाते है लोग
ईश्वर के नाम पर |
बदलता कुछ भी नहीं
लूट नहीं लूट के तरीके बदलते है |
नित जुड़ते है नए आयाम लूटशास्त्र में
चहेरे बदलते है, शासको के महत्वाकांछाये नहीं
बदलते है तानाशाही के तरीके प्रजातंत्र के नाम पर |
बदलता कुछ भी नहीं
देह नहीं बदलती, देह के दर्द नहीं बदलते |
देह खाती है साँस लेती है सोती है आज भी
आज भी देह बिकती है , इन्सान की
आज भी रोती है ,माँये पुत्रविलाप मे
आज भी बिकते है इमान, सरे बाजार पर |
Streight from the heart....
ReplyDeleteThanks brother.....
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