दुनिया मे सब नश्वर है पर लाठी अमर है ।बस समय के साथ और लठैत की मंशा के साथ इसको चलाने के तरीके बदल गए ।सच मे तो लाठी एक मल्टीटास्किंग यंत्र है ,बुढ़ापे का सहारा भी है ,बदमाशो पर भी चलती है । लकिन जब सरकार की नहीं चलती तो निहत्थों पर भी चलती है ।
आजादी से पहले लाला लाजपत राय पर बरसी लाठियाँ अंग्रेजों के ताबूत की कील बन गयी और लाठी ने गाँधी जी को भी सहारा दिया जिसे महात्मा गाँधी पकड़ के चलते थे । इस तरह लाठी के योगदान को आजादी के आन्दोलन मे भी नहीं भुलाया जा सकता ।
आज के युग मे सरकारें भी देश को भी लाठियो से देश चलाती है ।सरकार के पास केवल काठ की लाठी नहीं होती ,उसके पास धर्म जाति ,पैसे और फूट डालने की भी लाठियाँ होती है । रविवार को इंडिया गेट पर जब सामूहिक रेप के विरोध मे दिल्ली के युवा एकत्रित हुए तो खूब पुलिसिया लाठी चली और लाठी फिर चर्चा मे आयी ।निहत्थे पर चलने वाली हर लाठी एक की अगर आप देश के सच्चे नागरिक है तो आपने कभी न कभी लाठी का स्वाद चखा होगा ।
अंत मे जनता के पास भी चुनावी वोट की लाठी होती है ,जिसे समाज अपनी सोच का तेल लगा मजबूत कर सकता है ।
शानदार लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!!
उम्दा लाठी महिमा !!
ReplyDeleteतंज़ बड़ा ही मजेदार लगा ...सही भी ..सटीक भी ..सार्थक भी
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