हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ..
न मैं हिन्दू हूँ ,
न मैं मुस्लिम हूँ ,
रंजिशों की चौखट पर ,
रोती, पुत्र रक्त से नहलायी गयी माँ हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।
न मैं मंदिर हूँ ,
न मैं मस्जिद हूँ ,
वोट बैंक की लूट पर ,
प्रेम धर्म बतलाने वाली जीवन की घोर निराशा हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।
न मैं लक्ष्मीबाई हूँ ,
न मैं रजिया सुल्ताना हूँ ,
राम खुदा के नाम पर ,
लूटी अस्मत वाली नंगी आँखों का निवाला हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।
न मैं बच्ची हूँ ,
न मैं बुढिया हूँ ,
दंगो के मेलो पर ,
सब हाथों से मरोड़ी गयी गुड़िया हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ ।
(अयोध्या को हम सभी अपने धार्मिक पूर्वाग्रहों से देखते है ,कभी उस शहर की नजरों से नहीं देखते ।जो सरयू तट पर बैठ कर अपने दाग धोना चाहता है ।)
उत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteधन्यवाद..
Deleteरंजिशों की चौखट पर ,
रोती, पुत्र रक्त से नहलायी गयी माँ हूँ ,
हाँ ,मैं अयोध्या हूँ
अयोध्या की पीड़ा को उकेरने का अच्छा प्रयास किया आपने …
योगेश दीक्षित जी !
शासन तंत्र द्वारा घरों से निकाल निकाल कर निहत्थे श्रद्धालुओं के रक्त से अयोध्या मां को जिस तरह नहलाया गया , वह न भुलाया ही जा सकता है न ही माफ़ किया जा सकता है!!
शुभकामनाओं सहित…
मिश्री से मीठे शब्दों के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteso much hype has been already created that now Ayodhya has become an inseparable part of cheap politics. When will we all adopt the religion of 'Humanity'.
ReplyDeletebeautifully portrayed by you.
क्या करें लोग नहीं मानते । जाति ,धर्म की बाते लोगो मे नशेड़ी के नशे जैसी होती है और नेता इस नशे के व्यापारी होते है ।
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