देखा मालिक को
किये मुट्ठी बंद
मुट्ठी मे थी उनके
मेरी साँसे ।
उनके पास था एक चाबुक
चाबुक जो खींचता था
पसीने से सांसे
अगर आज मजदूरी मे मुट्ठी भर साँसे मिली
तो देखेंगे रोटी कितनी हवादार बनती है ।
किये मुट्ठी बंद
मुट्ठी मे थी उनके
मेरी साँसे ।
उनके पास था एक चाबुक
चाबुक जो खींचता था
पसीने से सांसे
अगर आज मजदूरी मे मुट्ठी भर साँसे मिली
तो देखेंगे रोटी कितनी हवादार बनती है ।
आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteआप का वर्णन बहुत बढ़िया है, इस कविता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है।
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