Sunday, 25 September 2016

मुट्ठी मे साँसे

देखा मालिक को
किये मुट्ठी बंद
मुट्ठी मे  थी उनके
मेरी साँसे ।
उनके पास था एक चाबुक
चाबुक जो खींचता था
पसीने से  सांसे
अगर आज मजदूरी मे मुट्ठी भर साँसे मिली
तो देखेंगे रोटी कितनी हवादार बनती है ।






3 comments:

  1. आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आप का वर्णन बहुत बढ़िया है, इस कविता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  3. बहुत अच्छा लेख है।

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